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Web क्या है? –
World Wide Web (सामान्यत जिसे: वेब कहा जाता है) वेब आपस में परस्पर जुड़े हाइपरटेक्स्ट डॉक्युमेंट्स का इन्टरनेट द्वारा प्राप्त करने का सिस्टम है। इंटरनेट पर जो भी कंटेंट उपलबध हैं वह सब वेब का ही हिस्सा है। वेब सर्वर्स पर स्टोर रहता है, जिन्हे वेब ब्राउजर की सहायता से हम उन वेब पन्नों को देख सकते हैं जिनमें टेक्स्ट, फोटो, वीडियो, एंवं अन्य मल्टीमीडिया होते है। तो चलिए जानते Web1.0, Web 2.0 और Web 3.0, बारे में और इनका क्या महत्व है?
Web 1.0 क्या है?
Web 1.0 वो चीज है जब इंटरनेट की शुरुआत हुई थी। वेब 1.0 “वर्ल्ड वाइड” वेब या इंटरनेट है जिसका आविष्कार वर्ष 1989 में हुआ था। उस समय इंटरनेट पर जो नंबर ऑफ़ वेबसाइट थी, वो एक मात्र 1 lack के अस पास थी पुरे विशव में और Web1.0 केवल Read-Only Web था। क्योंकि उस समय इंटरनेट पर टेक्स्ट फॉर्मैट में जानकारियां मिलती थीं।
Web 1.0 चुनौतिया।
Web 1.0 में भले ही शुरुआती दिनों में ई-कॉमर्स वेबसाइट्स थीं, परन्तु यह एक बंद वातावरण था, यूजर स्वयं इंटरनेट पर कोई कॉन्टेंट नहीं बना व पोस्ट कर सकता था। इसके बाद शुरुआत हुई Web 2.0 की।
Web 2.0 क्या है?
Web 2.0 सिर्फ Read-Only तक सिमित न रहकर “Write-Web” की सुविधा भी उपलबध है। अर्थात यूजर इसमें एडिटिंग भी कर सकते है। ( इसका उदहारण ‘विकिपीडिया‘ है – जहा पर यूजर एडिटिंग भी कर सकता है ) Web2.0 में सबसे बड़ा फीचर है “क्लाउड कंप्यूटिंग” का। Web 2.0 के अंदर वेबसाइट बड़ कर करीब 100 मिलियन websites हो गई। इसी कारण इसमें यूजर भी दिन प्रति दिन बढ़ रहे है। अभी जो इंटरनेट हम यूज़ करते है वो भी Web 2.0 का ही चल रहा है।
Web 2.0 की विशिष्ट विशेषताए।
- Web 2.0 का, कांसेप्ट है की यहाँ पर वेबसाइट के लिए कंटेंट यूजर बनाते है और पूरी दुनिया को दिखाते है।
- Web 2.0; का अच्छा उदहारण फेसबुक है, जो की मार्कज़करबर्ग द्वारा बनिए गयी कंपनी है। जिसमे यूजर अपनी ID क्रिएट कर, कंटेंट, पोस्ट , विडिओ आदि डाटा जैसी चीज़े अपलोड कर सकते है।
- इसी से मिलता जुलता यूट्यूब का भी कांसेप्ट है जहा पर यूट्यूब कंटेंट तैयार नहीं करता बल्कि उसके यूजर तैयार करके अपलोड करते है।
- इसी कांसेप्ट को बड़ी-बड़ी कम्पिनिया फॉलो कर रही है (जैसे :- फेसबुक , यूट्यूब और टिंडर आदि)।
Web 2.0 में चुनौतिया।
Web 2.0 में, पोस्ट, आर्टिकल व विडिओ अपलोड करने के बाद यूजर का अधिकार ख़त्म हो जाता है। उदाहरण के तौर पर आपके द्वारा फेसबुक या यूट्यूब पर कोई कॉन्टेंट शेयर करने के बाद यूज़ का अधिकार ख़त्म हो जाता है। कंपनी डेटा कॉन्टेंट को अपने हिसाब से कैसे भी यूज कर सकती हैं।
यही कांसेप्ट फेसबुक, टिम्बर व अन्य ऑनलाइन-वेब्सीटेस पर होता है की यूजर के द्वारा अपलोड किया गया कंटेंट कितने लोगो तक पोचेगा, search engine में पहले पेज पर दिखेगा की नई, पूरा कण्ट्रोल ऑनलाइन वेबसाइट का ही होता है। एक तरह से इनकी मोनॉपली होती है। फिर आता है Web 3.0,
Web 3.0 क्या है?
Web 3.0: – यह चैन है कंप्यूटर्स का, कोई भी एक सेंट्रलीसेड सिस्टम नहीं है। ( यहाँ पर कोई एक सेंट्रल कंप्यूटर का सर्वर नहीं होगा, मल्टीप्ल कम्प्यूटर्स होंगे व सब डिस्ट्रीब्यूटिव नेटवर्क से कनेक्टेड होंगे। यूजर का डाटा पर्टिक्यूलरली एक सर्वर पर न रहकर मल्टीप्ल डिस्ट्रिब्यूटेड नेटवर्क पर रहेगा व उसकी मल्टीप्ल copies उपलब्ध होगी )।
Web 3.0 का कॉन्सेप्ट इंटरनेट को डिसेंट्रलाइज करना है। ये ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी पर आधारित होगा। क्रिप्टोकरेंसी भी ब्लॉकचेन पर आधारित है। इस वजह से ही क्रिप्टोकरेंसी डिसेंट्रलाइज्ड करेंसी है। अर्थात, इसे ऑपरेट करने के लिए कोई एक रेगुलेटरी बॉडी नहीं होती। Web 3.0 में कोई एक कंपनी नहीं होगी, बल्कि हर यूजर ही अपने अपने कॉन्टेंट के मालिक होंगे।
अमेज़न, फेसबुक व गूगल अदि जैसी बड़ी कम्पनीज के पास जो इंटरनेट की पावर है वो अब यूजर के पास व लोगो के पास चली जाएगी। व कुछ बड़ी -बड़ी कंपनियों की मोनॉपली नहीं रहेगी।
उदहारण Web3.0;
NFT यानि “Non Fungible Tokens “, ये एक तरह का डिजिटल एसेट व डाटा होता है, NFT डिस्ट्रब्यूटिवे नेटवर्क व ब्लॉकचैन नेटवर्क के कांसेप्ट पर कम करती है। इसमें यूजर इमेज, गेम, विडिओ व कंटेंट किसी को भी NFT में बदल कर मोनेटाइज कर सकता है। क्योकि यह एक तरह के डिजिटल टोकन ही होते है।
Web3.0 यूनिवर्स के अंदर ही NFT या नॉन फंगिबल टोकन आता है, NFT को खरीदने के लिए भी क्रिप्टो कोइन्स का उपयोग होता है। NFT केवल एक जेपीईजी फाइल होती है।
यूजर को NFT के अंदर कंटेंट व आर्ट की डिजिटल ओनरशिप मिलती है। NFT में फ्रॉड, गड़बड़ करना ना मुमकिन है, यही सबसे बड़ी ताकत होती है। NFT का web 3.0 टेक्नोलॉजी में सही तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है। और लोगो के हाथो में वो ताकत दी जा सकती है, जो आज से पहले उनके पास नहीं थी।
Web 3.0 में भी चुनौतिया
Vastness: – इसके अंदर भी चुनौतियां है, इंटरनेट बहोत विशाल है इसके अंदर बिल्लिओन्स ऑफ़ पेजेज है। आज तक इंटरनेट बहोत पुराना हो गया है परन्तु हम अभी भी डुप्लीकेट टर्म को हटा नहीं पाए है। जैसे “Read ” व ” Form ” जिसके दो अर्थ होते है। फिर भी इंटरनेट पर एअक ही अर्थ दिखता है।
Vagueness (अस्पष्ट): – यूजर query अस्पष्ट होती है। इंटरनेट पर लोग सर्च करते वक्त अस्पष्ट होते है की उनके सवालो के जवाब उन्हें पूरी तरीके से इंटरनेट पर नहीं मिलते।
जिसे संदेह पैदा होती है जैसे; COVID के समय पे लोगो को हल्का सा ज़ुखाम व भुखार होता तो वो गूगल पे सर्च करते, कुछ साइट्स पे उन्हें कुछ मिलता था परन्तु कुछ साइट पर यह डिक्लेअर कर दिया जाता है की COVID हो गया है। अगर इसका कण्ट्रोल लोगो के पास पंहुचा रहे है। तो इसकी अनसर्टेनिटी और बढ़ सकती है।
Web 3.0, अभी बहुत प्राथमिक कांसेप्ट है, लेकिन अगले 10 साल तक ऐसा भी मुमकिन है कि Web 3.0, Web 2.0 को रिप्लेस कर दे और इंटरनेट पूरी तरह बदल जाए। अभी इसको डेवेलप होने में और समय लगेगा।
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