बारिश कब होगी यह कैसे पता चलता है? Radar कैसे कार्य करता है?

बारिश कब होगी यह कैसे पता चलता है? Radar कैसे कार्य करता है?

बादल फटना, तूफान या फिर तेज़ बारिश मौसम बदलाव के इस दौर में मौसम सम्बन्धी सूचना का दुरुस्त होना बेहद ज़रूरी है। हम बात कर रहे है डॉप्लर वेदर Radar की। जिससे मौसमी बदलाव के बारे में जानकारी मिलती है।

मौसम Radar, जिसे मौसम निगरानी रडार (डब्लूएसआर) और डॉपलर मौसम रडार भी कहा जाता है, एक प्रकार का रडार है जो वर्षा का पता लगाने, इसकी गति की गणना करने और इसके प्रकार (बारिश, बर्फ, ओला आदि) का अनुमान लगाने के लिए उपयोग किया जाता है। आधुनिक मौसम रडार ज्यादातर पल्स-डॉपलर रडार हैं, जो वर्षा की तीव्रता के अलावा बारिश की बूंदों की गति का पता लगाने में सक्षम हैं। तूफानों की संरचना और गंभीर मौसम पैदा करने की उनकी क्षमता को निर्धारित करने के लिए दोनों प्रकार के डेटा का विश्लेषण किया जा सकता है।

पहला डॉप्लर वेदर Radar कब लगाया गया?

भारत में पहला डॉप्लर वेदर Radar चेन्नई में 2005 में लगाया गया था। देश में बड़ी संख्या में डॉप्लर वेदर रडार लगाने की पहल मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेज द्वारा वर्ष 2007 में की गई थी।

क्या है डॉप्लर वेदर Radar?

  • डॉप्लर वेदर Radar से 400 किलोमीटर तक के क्षेत्र में होने वाले मौसमी बदलाव के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
  • यह रडार डॉप्लर इफेक्ट का इस्तेमाल कर अतिसूक्ष्म तरंगों को भी कैच कर लेता है। जब अतिसूक्ष्म तरंगें किसी भी वस्तु से टकराकर लौटती हैं तो यह रडार उनकी दिशा को आसानी से पहचान लेता है।
  • इस तरह हवा में तैर रहे अतिसूक्ष्म पानी की बूँदों को पहचानने के साथ ही उनकी दिशा का भी पता लगा लेता है। यह बूँदों के आकार, उनकी रडार दूरी सहित उनके रफ्तार से सम्बन्धित जानकारी को हर मिनट अपडेट करता है।
  • इसस डाटा के आधार पर यह अनुमान पता कर पाना मुश्किल नहीं होता कि किस क्षेत्र में कितनी वर्षा होगी या तूफान आएगा।
  • इस सिस्टम का सबसे बड़ा दोष यह है कि किसी मौसमी बदलाव की जानकारी ज्यादा-से-ज्यादा चार घंटे पहले दे सकता है।

डॉप्लर Radar के प्रकार

  • डॉप्लर रडार को तरंगदैर्ध्य के आधार पर अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है, जैसे- एल( L), एस(S), सी(C), एक्स(X), के(K)।
  • X-बैंड रडार: ये 2.5-4 सेमी. की तरंगदैर्ध्य और 8-12 गीगाहर्ट्ज़ की आवृत्ति पर कार्य करते हैं। छोटे तरंगदैर्ध्य के कारण X-बैंड रडार अत्यधिक संवेदनशील होते हैं जो सूक्ष्म कणों का पता लगाने में सक्षम होते हैं।

क्यों हैं इसकी जरूरत

बादल फटने की घटना का पूर्वानुमान लगाना बहुत मुश्किल होता हैं। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार बादल फटने की घटना का अनुमान नाउकास्ट (NOWCAST) पद्धति के द्वारा ऐसा होने के कुछ ही घंटों पहले लगाया जा सकता है। बादल का फटना यूँ तो किसी भी समय और कहीं भी हो सकता है लेकिन इसका सबसे ज्यादा प्रभाव पर्वतीय इलाकों में देखने को मिलता है।

इसकी मुख्य वजह है पर्वतीय ढलानों से बादल का टकराकर ऊपर उठना होता है। ऊपर उठाने के क्रम में बादल अपेक्षाकृत ठंडी हवाओं के सम्पर्क में आने से संघनित हो जाते हैं और पानी की बूँदों में तब्दील हो जाते है।

इसी प्रक्रिया के बार-बार होने के कारण इन बूँदों के आकार में बृद्धि होती जाती है और जब उनका भार इतना अधिक हो जाता है कि वायुमंडल सहन नहीं कर सके तो किसी स्थान विशेष में वे अचानक बरस जाते हैं।

बादल फटने की घटना में कम-से-कम 10 मिलीमीटर या उससे अधिक वर्षा होती है जिससे प्रभावित इलाके में अचानक बाढ़ (Flash Flood) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, डॉप्लर वेदर रडार की सहायता से इस तरह की घटनाओं के बारे में ज्यादा-से-ज्यादा चार घंटा पूर्व जानकारी मिल सकती है, जिससे समय रहते लोगों को सूचना देकर इनका प्रभाव कम किया जा सकता है।

आगे की तैयारी

वहीं सूत्रों के मुताबिक मौसम की सटीक भविष्यवाणी के लिए 46 नए स्थापित किए जाएंगे, जोकि इनकी संख्या बढ़कर 75 हो जाएगी। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आइएमडी) ने वर्ष-2025 तक देश में इन्हें स्थापित करने का लक्ष्य रखा है।

अभी आइएमडी के 24, इंडियन एयरफोर्स के तीन व भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आइआइटीएम) पुणे के दो डॉप्लर रडार स्थापित हैं। जल्द ही उत्तर पश्चिम हिमालय के लिए 10 एक्स बैंड डॉप्लर रडार, मैदानी इलाकों के लिए 11 सी बैंड डॉप्लर रडार, उत्तर-पूर्व राज्यों में 14 एक्स बैंड डॉप्लर रडार स्थापित किए जाएंगे, बाकी बचे रडार 2025 तक लगा लिए जाएंगे।

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