What is hyperloop?

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IIT Madras और भारतीय रेलवे भारत का पहला ह्यपरलूप विकसित करेंगे। रेल मिनिस्ट्री ने यह घोस्णा की है वह सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस हाइपर लूप टेक्नोलॉजी को, IIT Madras में बनाया जाएगा। यह एक अल्ट्रा-हाई-स्पीड ग्राउंड ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम है जो माल और लोगों दोनों के transportation में मदद करेगा। फ्लाइट ट्रेवल से भी अधिक गति होगी hyperloop में। घंटो का सफर कुछ मिंटो में तय किया जा सकता है इसमें।

इस लांच का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह ट्यूबों में मैग्नेटिक लेविटेशन टेक्नोलॉजी का उपयोग करता है। जो तेज गति से यात्रा करने में सक्षम बनाता है- उदहारण हवाई जहाज की गति। यह टेक्नोलॉजी आत्मनिर्भर भारत की और एक इनिशिएटिव होगा।

Hyperloop क्या है?

Hyperloop एक कांसेप्ट है जहा पर हाई स्पीड ट्रांसपोर्टेशन, एक pressurized vehicle एक लौ प्रेशर टनल से होकर गुजरेगा, जो हवाई यात्रा के सामान लगभग बिना किसी प्रतिरोध के वातावरण में आवाजाही की अनुमति देता है। हाइपरलूप सार्वजनिक और माल परिवहन दोनों के लिए एक प्रस्तावित उच्च गति परिवहन प्रणाली है।

यह टेक्नोलॉजी कितनी महत्वपूर्ण हो सकती है भविष्य में, यह इसकी स्पीड को देख कर अनुमान लगाया जा सकता है। इसकी स्पीड 700 माइल्स प्रति घंटे होंगी। जो की जमीन के ऊपर या निचे विशाल कम दवाब वाली tubes के अंदर चलेगी। 2007 में, 70 IIT-मद्रास के छात्रों की एक टीम इस पर काम कर रही थी। और इसे नाम दिया गया ‘अविष्कार हाइपरलूप’। वे इसे स्केलेबिलिटी और Frugal इंजीनियरिंग concepts की तरह बनाने के लिए विभिन्न अवधारणाओं को लागू कर रहे थे।

Hyperloop को समझने के लिए पहले हमें एयर रेजिस्टेंस व फ्रिक्शन को समझना होगा तो चलिए जानते है। यह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है, ऑब्जेक्ट की स्पीड में।

Air Resistance & Friction

Air resistance जिसका अर्थ है हवा का दवाब। जब कोई ऑब्जेक्ट बहोत तेज़ी से चलता है उसके ऊपर दबाव पड़ता air resistance का। चलिए एक उदहारण से समजते है, आपने इंडियन रेलवे का इंजन देखा होगा व वन्दे भारत का इंजन भी देखा होगा, आपने कभी सोचा इनके इंजनो की शेप भिन-भिन होने का कारण क्या है? व अन्य ट्रैन जिन की स्पीड इतनी तेज होती है जैसे बुल्लेट ट्रैन इसका इंजन तो बिकुल अलग है, दोनों की तुलना में।

अब यह सवाल आता हैं की इनके स्ट्रक्चर ऑफ़ इंजन की शेप अलग क्यु हैं?

Air resistance और फ़्रिक्शन, ट्रैन की स्पीड में बाधा उत्पन करती है । Bullet train का इंजन इंडियन रेलवे से इसलिए अलग है क्योकि इंजन का आकार अलग होने की वजह से हवा का दवाब कम पड़ता है। अगर इंजन की शेप सीधी होगी तो उसे हवा का बल झेलना पड़ेगा जो उसकी स्पीड को कम कर देगा। अर्थात उसकी speed 60KM/hr की स्पीड से घट के 45 Km/hr की स्पीड हो जाएगी क्योंकि हवा अस्सेर्ट करेगी व जोर डालेगी इंजन पे, जिससे ट्रैन की स्पीड कम हो सकती है।

अब सवाल यह आता है की क्या हम इस हवा की रोक सकते है। रोकना आसान नहीं है इसके दबाव को कम किया जा सकता हैं। ट्रैन हवा के अपोजिट डायरेक्शन में चलती है। आम ट्रैन का इंजन सीधा होता है जिसकी वजह से हवा का जोर इंजन पे अधिक होता है। फ्लैट स्ट्रक्चर ना रख कर curve शेप में रखा जाता है। ताकि इंजन का स्ट्रक्चर से एयर रेसिस्टेन्स को कम किया जा सके।

क्योकि इसका लॉ कहता है जितनी ज्यादा एयर रेसिस्टेन्स स्पीड उतनी कम, जितना कम रेसिस्टेन्स स्पीड उतनी ज्यादा । यह ट्रैन के इंजन arrow dynamic डिज़ाइन के ऊपर बेस्ड हैं, इसी डिज़ाइन व कांसेप्ट पर ऐरोप्लान, रॉकेट आदि हाई स्पीड ऑब्जेक्ट डिज़ाइन होते हैं। क्यों ना ऐसा हो air resistance जीरो हो व मूविंग ऑब्जेक्ट के आस पास वैक्यूम क्रिएट करदे – वैक्यूम के अंदर हवा नहीं होती हैं, तो जब हवा होगी नहीं होगी, तो Resistance कैसे आएगा यही कांसेप्ट है हाइपर लूप टेक्नोलॉजी का । जो इस्तेमाल किया जा रहा है।

Hyperloop technology में एक closed tube के अंदर एक कैप्सूल मूव करेगा, इस कैप्सूल के आगे बिलकुल एक पंखा लगा हुआ है, जो की आगेकी हवा को सक्क करके पीछे की और थ्रो कर देता है। अर्थात आगे के एरिया में एक वैक्यूम क्रिएट हो जाता है। जिसकी वजह से एयर रेसिस्टेन्स की प्रॉब्लम सोल्वे हो जाती है, स्पीड को कम करने का दूसरा कारण Friction है। चलिए समझते है इसके बारे में,

फ्रिक्शन कैसे ट्रैन की स्पीड को काम करता है ?

Friction – जब भी कोई ऑब्जेक्ट किसी सरफेस पे मूव करता है। फ्रिक्शन उसे अपोजिट डायरेक्शन में अस्सेर्ट करता है, जिसे फ्रिक्शन फाॅर्स कहते है।

• जितना ज्यादा एरिया सरफेस के कांटेक्ट में होगा, फ्रिक्शन फाॅर्स भी उतनी ज्यादा होगा। इसी वजह से एक सर्कल ऑब्जेक्ट आसानी से मूव करता, square शेप की तुलना में। इसलिए ट्रैन के पहिये गोल होते है। व्हील शेप में भी ऑब्जेक्ट सरफेस के कांटेक्ट में आता है, अगर ऑब्जेक्ट सरफेस के कांटेक्ट में ना आए व सरफेस के ऊपर रहे, ताकि फ्रिक्शनल फाॅर्स अस्सेर्ट व दवाब न रहे। यह दूसरा सलूशन निकाला गया हाइपर लूप टेक्नोलॉजी में।

यह टेक्नोलॉजी ऐसी होगी यह सरफेस के ऊपर फ्लोट करेगी सरफेस को टच नहीं करेगी इस टेक्नोलॉजी को कहा जाता है Magnetic Levitation.

Magnetic Levitation

Magnetic Levitation एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा किसी वस्तु को मैग्नेटिक एरिया के आलावा बिना किसी के सहारे के सस्पेंडेड कर दिया जाता है। अर्थात इसमें ऑब्जेक्ट हवा में लटका हुआ होगा। इस टेक्नोलॉजी पर ट्रैन भी चलती है, जापान में Maglev train। इनकी स्पीड भी बहोत हाई होती है क्योकि जो दो मेजर चीजे रेजिस्टेंस और फ्रिक्शन, जो स्पीड में रूकावट लाती है। उनमे से इन्होने फ्रिक्शन बिलकुल ओवरकम कर दिया है।

हाइपरलूप के महत्वपूर्ण लाभ।

इसे सस्ता होने के साथ-साथ तेज भी कहा जाता है। इसके साथ ही यह पर्यावरण के अनुकूल भी है – हाइपरलूप से होने वाला प्रदूषण अन्य हवाई यात्रा साधनों की तुलना में कम है। भारतीय रेलवे का लक्ष्य हाइपरलूप की मदद से कार्बन neutrality प्राप्त करना है। 

हाइपरलूप डिजाइन में तीन आवश्यक घटक :

ट्यूब, पॉड और टर्मिनल।

ट्यूब एक बड़ी सीलबंद,low pressure system (आमतौर पर एक लंबी tunnel) है। पॉड atmospheric दबाव पर दबाव डाला गया एक कोच है जो air resistance or friction propulsion का उपयोग करके इस ट्यूब के अंदर वायु resistance or friction से काफी हद तक मुक्त होता है। टर्मिनल पॉड के आगमन और प्रस्थान को संभालता है।

8 thoughts on “Hyperloop Technology”
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